हर अख़बार वाला झूठा और चोर आदमी नहीं होता है
हर अख़बार वाला झूठा और चोर आदमी नहीं
होता है
लगभग 10 साल पहले कि बात है मैं और मेरा दोस्त दिल्ली के एक सरकारी
अस्पताल में जूनियर रेसिडेंट डॉक्टर के पद पर काम करते थे | जिन्दगी बड़े आराम से चल रही थी, टाइम पर ड्यूटी जाना अपना काम करना और वापस अपने ठिकाने पर
आना | ठिकाना खुद का नहीं था, किराये पर लिया हुआ था |
अख़बार पढ़ने का शौक बचपन से ही थी इसलिए एक अखबार वाला लगाया हुआ
था पर कई बार वो अख़बार डालने तो आता नहीं था पर हर महीने के महीने बिल ले के आ
जाता | आखिर परेशान होकर हमने उसको बदल के
किसी लड़के से अख़बार मँगाना शुरू कर दिया, एक दो
महीने तक तो ठीक रहा पर फिर से वही सब शुरू हो गया कि अखबार आये ना आये बिल जरूर आ
जाता | खास बात ये थी कि अखबार डालने वाला और बिल लेके आने वाला
दोनों अलग अलग आदमी होते थे तो बिल देने वाला हमेशा अपनी बात पर अडिग रहता कि
अखबार तो रोज़ ही आता है | तंग आकर
हमने दूसरा अखबार वाला भी बंद कर दिया और इन्टरनेट पर ही न्यूज़ पढ़ने लगे | कुछ समय के बाद मकान मालिक के यहाँ विवाह होने के कारण हमको
मकान खाली करना था, दिल्ली
में मकान इतनी जल्दी मिलते भी तो नहीं है सो हमने अपने एक सीनिअर के यहाँ ठिकाना ढूंढ लिया, जो कि आज भी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में अभी
न्यूरोसर्जन हैं |
सीनियर के यहाँ भी वही अख़बार वाले का रोना था, वो हर बिल का भुगतान करते और अखबार वाला कई बार अखबार देने
ही नहीं आता था |
एक दिन कि बात है हम तीनो लोग
सुबह छत पर रविवार के दिन टहल रहे थे कि अख़बार वाला बिल लेके आ गया, काफी देर तक बहस के बाद ही वो माना कि उसका लड़का रोज़ अखबार
देने नहीं आता है, थोड़ी देर
बाद सर ने बिल का भुगतान कर दिया और अख़बार वाला इस वादे के साथ चला गया कि अब आगे
से समस्या नहीं होगी | उसके
जाने के बाद मेरे दोस्त ने थोडा सोच विचार के कहा, “सर हर
अख़बार वाला झूठा और चोर आदमी होता है” इनको
सिर्फ पैसे मतलब होता है अखबार के पहुँचने या ना पहुँचने से कोई मतलब नहीं है; अचानक हमने देखा कि बजाय सहमति दिखाने के सर कुछ गंभीर से हो
गये और उन्होंने थोड़ी देर तक कुछ जबाब नहीं दिया | कुछ देर तक चुप रहने के बाद उन्होंने धीरे परन्तु बड़े ही गंभीर
स्वर में कहा “नहीं यार ऐसा नहीं है” | दोस्त ने फिर कहा सर आपने आज ही तो
देखा है कि कैसे बिना अख़बार डाले वो पैसे लेके गया और हमारा पिछला अख़बार वाला भी
यही करता था |
लेकिन सर ने इस बार थोड़ी
द्रद्ता से कहा कि “हर अखबार
वाला झूठा और चोर नहीं होता है” तुम
दोनों शायद यकीन ना करो पर मैं भी बचपन में अखबार डालने का ही कार्य करता था | हम दोनों की हालत ऐसी थी कि जैसे आसमान से गिरे, यकीन करना मुश्किल था कि दिल्ली के प्रतिष्ठित हॉस्पिटल का
न्यूरोसर्जन बचपन में अखबार डालने का काम करता था |
हम दोनों लोग अपराध बोध से दब से गये कि कहीं सर को ठेस ना पहुँची
हो, पर सर ने बिना किसी गुस्से के शांत
भाव से बताया कि उनका परिवार बहुत गरीब था, एक कमरे
के मकान में गुजारा होता था, पिताजी
छोटे-छोटे खाखी लिफाफे बनाते थे और उनको मेडिकल स्टोर पर बेचा करते थे , छोटी बहिन और मैं पढ़ते थे | परिवार को सहारा देने के लिए मैंने अखबार डालना शुरू कर दिया और
साथ में मेडिकल कि तैयारी भी शुरू कर दी, कुछ
डोक्टोर्स के यहाँ भी में अख़बार डालने जाता था तो उनके बच्चे जो मेडिकल कि तैयारी
कर रहे थे उनसे नोट्स भी मिल जाते थे | धीरे
धीरे तैयारी चलती रही और रिजल्ट आया | मेरा
सेलेक्शन हो गया था एमबीबीएस के लिए, घर में
सारे लोग खुश थे | सरकारी मेडिकल
कोलेज की फीस भी बहुत कम थी पर दैनिक खर्चों के लिए तो पैसे चाहिए ही थे इसलिए
अखबार डालने का काम जारी रखा | जिन
डॉक्टर के यहाँ में अखबार डालता उनको यकीन नहीं होता था कि मैं मेडिकल में सेलेक्ट
हो गया हूँ और अब भी अखबार डालता हूँ | फिर
अखबार डालने का काम बंद कर के पिताजी के बनाये लिफाफे बेचने के लिए एमबीबीएस के
तीसरे साल तक जाता रहा तब तक पिताजी का काम कुछ चल निकला और मैंने बाहर काम करना
बंद कर दिया |
पढाई का महत्व समझ आ गया था
इसलिए मन लगा के पढ़ता गया , पहले
सर्जरी से एमएस किया फिर उसके बाद एमसीच किया न्यूरोसर्जरी में | बहिन भी पढ़ती रही और आज दिल्ली में ही एक प्राइवेट फर्म में
अच्छे पद पर काम करती है | मात्र दो
मिनटों में सर ने अपने जीवन के संघर्ष को बयान कर दिया, अब उनके चहरे में जो शांति का भाव था वो निश्चित ही कड़े
संघर्ष के बाद ही आ सकता था | एक ऐसी
शांति जिसके लिए लोग उम्रे भर भागते हैं पर मिल नहीं पाती है | अखबार वाली बात तो अब नेपथ्य में चली गयी थी, अब तो बस एक ईमानदार और संघर्षशील डॉक्टर की सफलता की कहानी
याद थी जिसने हर छोटे से छोटा काम किया पर अपने दृढ इरादों को जरा भी डिगने ना
दिया |
हर एक गुज़रते दिन के साथ मैंने ये महसूस किया है कि जो लोग पूरे
मन के साथ निडर होकर एक खास लक्ष्य के लिए मेहनत करते हैं वो अपने लक्ष्य को पा ही
लेते हैं और दुसरे कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाते हैं | उस दिन एक बात और सीखी कि जरूरी नहीं कि हर बड़ा आदमी बचपन
से किसी बड़े घर में पैदा हुआ हो, लोग छोटे
से छोटा काम करते हुए बड़े बनते हैं | मेरे कई
दोस्त मेडिकल में गरीब परिवारों से थे पर उनमें शायद ही कोई ऐसा था जो एमबीबीएस कि
पढाई के दौरान अख़बार डालने या दवाइयों के लिए लिफाफे बेचने का काम करता हो | उस दिन जो सीखने को मिला उसने मुझे एक बेहतर इंसान बनने में
मेरी मदद की और उस दिन कि सीख आज तक मेरे साथ है |
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Comments
बहुत ही शानदार